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Petrol, Diesel GST का गेंद और Old Pension पर केंद्र सरकार का रुख़ साफ़. जनता केवल दुधारू गाय

Petrol, Diesel पर सरकार ने अपना पासा फेका हैं. कहा हैं अगर सब सहमत तो फिर GST में लाने को तैयार. लेकिन ठीकरा राज्यो पर फोड़ा हैं की वह council में इस पर सहमति प्रकट करें. लेकिन जैसे केंद्र ने कहा की राज्य अगर OPS (old pension scheme) लागू करते हैं तो केंद्र राज्यों को पैसा NPS (national pension scheme) का नहीं देगा. जैसे इसमें केंद्र अपना स्टैंड क्लियर कर फ़ैसले ले रहा हैं वैसे petrol diesel price पर GST मामले में क्यों नहीं ले रहा हैं ?

आप और हम दुधारू गाय.

हम जनता हैं और दुधारू गाय भी. इस दुधारू गाय का मजा बछड़े के रूप में राज्य लेता है तो मालिक के तौर पर केंद्र. उम्मीद हमसे की जाती है कि हम एकदम सीधी गाय की तरह खड़ी रहें और ज्यादा तगड़ बगड़ किए तो सीधा “Tax और क़ानून” के चाबुक से कर दिये जाएँगे.

तात्पर्य इतना है कि दिन भर चरिये और दूध मालिक और बछड़े को पिलाते रहिए. जो आप अधिकतम कर सकते हैं वह अपना पेट पालने का रोज-रोज का कसरत कर सकते हैं. चंवर घूम सकते हैं धूप हो या पानी हो मेहनत जारी रखिए क्योंकि शाम में आपको फिर से दूध देना है.

Petrol Diesel पर केवल पॉलिटिक्स चल रहा है.

अगर बात की जाए तो पिछले कई दफा से पेट्रोल-डीजल समेत एयर टरबाइन फ्यूल और गैस को GST के अंतर्गत लाने के अनुलोम विलोम किए जा चुके हैं और अब इसमें एक नया अध्याय जोड़ दिया गया है. केंद्र ने कहा है कि हम जीएसटी के अंदर पेट्रोलियम पदार्थों को लाने के लिए तैयार है लेकिन इसके लिए राज्य सरकार तैयार हों.

बखूबी राज्य सरकार पेट्रोल-डीजल के बिक्री से कमाई करते हैं और सीधा अपना खजाना भरते हैं. केंद्र भी कई प्रकार के टैक्स लगाकर आपसे पेट्रोल-डीजल पर बिकने वाले कमाई से सीधे तौर पर अपना खजाना भर्ती है लेकिन अब जैसे ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर केंद्र ने अपना स्टैंड क्लियर किया है कि वह राज्यों को अपना पैसा इसके लिए नहीं देगी.

वैसे ही अगर केवल केंद्र चाहे कि पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के भीतर लाया जा सके तो अतिरिक्त टैक्स किए भार को कम कर वह राज्य सरकारों को उसका हिस्सा देकर इसे वापस जनता के लिए लिए गए बड़े फैसले में से एक फैसला करार दे सकती है.

केवल स्टंटबाज़ी और कुछ नहीं

दिक्कत यह है कि बढ़ती हुई महंगाई पर केंद्र को अपना पीछा भी छुड़ाना है और राजनीति भी करनी है तो उसके लिए यह सामान्य गेंद फेंक दिया गया है कि केंद्र जीएसटी में लाने के लिए तैयार है और राज्यों को इस पर हस्ताक्षर करने की जरूरत है जबकि ऐसी स्थिति जीएसटी आने के साथ ही पिछले कई वर्षों से चल रही है इस पर कोई समाधान नहीं है क्योंकि देश में केंद्र एक है लेकिन राज्य अनेक हैं.

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